शनिवार, 25 मार्च 2023

शोधादर्श' का विशेषांक : प्रेम बना रहे ✍️समीक्षक : डॉ. चंदन कुमारी

पुस्तक समीक्षा

'शोधादर्श' का विशेषांक : प्रेम बना रहे

✍️समीक्षक : डॉ. चंदन कुमारी 


गन्ने के गाँव खतौली से मोतियों के शहर हैदराबाद तक की संघर्ष और कामयाबी भरी अपनी यात्रा के विविध पड़ावों में जन-जन से संपर्क सूत्र साधते; सहज गति से अविराम मनःस्थिति के साथ निरंतर साहित्य सृजन में लीन और संगोष्ठियों में सदैव तत्पर रहनेवाले प्रो. ऋषभदेव शर्मा (1957) के व्यक्तित्व में अपनत्व की मिठास और वैदुष्य की कांति बड़ी ही सहज भाव  से भासती है। अपनी इस सहजता के कारण ही आज यह व्यक्तित्व न सिर्फ भारतवर्ष की भूमि पर ही, वरन हिंदी के वैश्विक पटल पर भी अपनी सशक्त पहचान रखता है। मित्र के रूप में वे अपनी मित्रमंडली की आभा हैं, गुरु के रूप में अपने छात्रों के पथ-प्रदर्शक हैं, एक साहित्यकार के रूप में वे निरंतर साहित्य सेवा में रत हैं और अपने अग्रजों के प्रति परम विनीत हैं। जहाँ ‘प्रेम बना रहे’ का सूत्रवत प्रयोग इनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है, वहीं एक प्रखर आलोचक की दृष्टि रखने वाले ऋषभदेव शर्मा समाज पर अपनी तीक्ष्ण दृष्टि रखते हुए तेवरी काव्य विधा के एक प्रवर्तक के रूप में भी सुविख्यात हैं। इस व्यक्तित्व के अंतरंग और बहिरंग को समग्रता में आँकने के प्रयास के फलस्वरूप ही नजीबाबाद (उत्तर प्रदेश) से निकलने वाली त्रैमासिक शोध पत्रिका 'शोधादर्श' ने अपना  दिसंबर2022 - फरवरी2023 का अंक ‘प्रेम बना रहे’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया है। इसके लिए संपादक अमन कुमार बधाई के पात्र हैं। पत्रिका के पक्ष में अतिथि संपादक डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह ने यह आशा व्यक्त की है कि “यह अंक उत्तरप्रदेश के खतौली गाँव से हैदराबाद एवं संपूर्ण दक्षिण भारत तक प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा की व्यक्तिगत एवं साहित्यिक यात्रा का दिग्दर्शन कराने में पूर्णतः सफल होगा।” 

यह अंक इस व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द विद्यमान एक आभामंडल को भली प्रकार उजागर करता है। इस आभामंडल में उनकी साहित्यिकता और आंतरिकता दोनों ही स्वर्णरश्मियों की भांति विकीर्ण प्रतीत होती हैं। उनकी आंतरिकता के एक पक्ष को उद्घाटित करते हुए संपादकीय में लिखा गया है कि आपको ऐसे पर्यावरण को बचाने की चिंता है जो झूठ और मक्कारी से दूषित किया जा रहा है।  कहना ही होगा कि यह आभामंडल आभासी नहीं है और आकाशी भी नहीं है। यह यथार्थ के ठोस भूतल पर, इस व्यक्तित्व के नैकट्य में रहे अथवा सान्निध्य प्राप्त साहित्यिक रुचि संपन्न व्यक्तियों की स्वानुभूत की गई अनुभूति एवं ऋषभ-साहित्य के स्वाध्याय से गृहीत निष्कर्षों के संयोजन के फलस्वरूप सामने आया हुआ आभामंडल है। इसकी निर्मिति आकृष्ट करती है। इस आकर्षण में स्वाभाविकता तो है पर उससे कहीं अधिक अपनत्व की प्रगाढ़ता है जो इस विशेषांक के शीर्षक की तथता का द्योतक भी है।

पत्रिका में समस्त आलेखों को विषयानुसार पाँच खंडों में वर्गीकृत किया गया है। वे खंड हैं- 1. आँखिन की देखी, 2. कागद की लेखी, 3. गहरे पानी पैठ, 4. चकमक में आग और 5. कबहूँ न जाइ खुमार। इन खंडों में ऋषभदेव शर्मा के जीवन एवं साहित्य के अंतरंग पहलुओं को छूने की चेष्टा की गई है। हाल ही में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा दो भागों में संपादित लगभग 700 पृष्ठ का बृहत अभिनंदन ग्रंथ “धूप के अक्षर” (2022)  लोकार्पित हुआ; और उसके बाद यह विशेषांक ‘प्रेम बना रहे’ आपके समक्ष प्रस्तुत है। अगर इसे उसका परिपूरक भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

विशेषांक में सम्मिलित लेखकों ने ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व के जिन अंतरंग पहलुओं का साक्षात किया और उसे यहाँ शब्दरूप दिया,  उसकी बानगी देखते चलें-

  • “नए लेखकों को प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए।...अपनी आलोचना को भी इस तरह अपनाने की कला और छोटी-छोटी बातों में भी दूसरों के नाम को आगे बढाने की प्रवृत्ति- दोनों ही विशेषताएँ आज के ज़माने में विरल हैं। निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं।।” (प्रवीण प्रणव) 

  • “उत्तर से आकर सुगंधित हवा का एक झोंका/ दक्खिनी भाषा में घुलमिल गया। आपकी वाणी से/ महीन तराश वाले शब्द निकलते हैं। आपका गंभीर स्वर/ चित्ताकर्षक लगता है|/ आपको सुनना धारोष्ण दूध पीने जैसा है|” (कविता: धन्य पुरुष, प्रो. एन.गोपि)

  • "विद्वान होते हुए भी विद्वत्ता के आभामंडल से गर्वित न होकर सहजता और अल्हड़पन से सभी के साथ सामंजस्य बना लेना उनकी विशिष्टता है। वे देश के एक बड़े साहित्यकार हैं, यह सभी जानते हैं लेकिन वे एक अच्छे और व्यापक दृष्टिबोध वाले पत्रकार और मीडिया लेखक भी हैं, इसे कम लोग ही जानते हैं।" (अरविंद सिंह) 

  • "ऋषभदेव जी मँजे हुए पत्रकार और समसामयिक विषयों को लेकर लिखने वाले फीचर लेखक भी हैं।" (प्रो. अश्विनीकुमार शुक्ल) 

  • प्रो. संजीव चिलूकमारि ने अपने आलेख में उन्हें ‘ज्ञान तापस’ की संज्ञा से विभूषित किया है।

  • डॉ. मंजु शर्मा ने इनके व्यक्तित्व के लिए लिखा है ‘कबीर जैसा मन और तुलसी जैसा भाव’।

इन अभिव्यक्तियों में अपनत्व विशेष प्रभावी हुआ है। यथार्थ की ये अभिव्यक्तियाँ उन्हें अतिशयोक्ति लग सकती हैं जो इनके व्यक्तित्व एवं साहित्य से सर्वथा अनजान हैं। इसलिए भी यह विशेषांक  पठनीय और शोधोपयोगी है। प्रो. देवराज का  ‘खतौली का औचक दौरा’ आलेख विशेष रूप से मर्मस्पर्शी है। इस यांत्रिक, भावहीन और मतलबी दुनिया में आत्मीय स्नेह का स्पर्श पाकर मन अभिभूत हो, कुछ पल को ठिठक जाता है। विद्वत्ता अंतःप्रकाश भले हो पर इसे प्रकाशित करने वाले दीये की घी-बाती तो स्नेह ही है। स्नेह की अभिव्यंजना का प्रतिफल ही ‘प्रेम बना रहे’ है। यानी ये आलेख रस्मी-रिवायती नहीं हैं, बल्कि उस प्रेम का प्रमाण हैं जो दक्षिण में हिंदी-सेवा करते हुए डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने कमाया है!

‘कविता के पक्ष में’ पुस्तक का संदर्भ लेते हुए डॉ. जी नीरजा ने लेखकद्वय (ऋषभदेव शर्मा और पूर्णिमा शर्मा) द्वारा चिह्नित कविता के लोकतांत्रिक दायित्व का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है – “युग जीवन को अपने में समेटना, समय के साथ सत्य को पकड़ना, मनुष्य को बिना किसी लागलपेट के संबोधित करना, प्रकाश और उष्णता की संघर्षशील संस्कृति की स्थापना करना और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दायित्व बोध का विकास करके क्रांति की भूमिका तैयार करना।” युगों-युगों से मनुष्यता और लोकतंत्र को जीवित रखने का दायित्व कविता ने सँभाला है। कविता के जिन लोकतांत्रिक दायित्वों को कवि ऋषभदेव शर्मा ने गिनाया है स्वयं को भी उन्होंने इन दायित्वों से बाँधे रखा है। युग की विषमता और भेदभरी दृष्टि जो हर संवेदनशील हृदय में शूल चुभाती है, वह इनके लिए भी शूल है और स्वतंत्रता के अमर बलिदानियों के बलिदान की व्यर्थता को महसूस कर यह कवि कहता है- ‘मेरे भारत में सर्वोदय खंडित स्वर्णिम स्वप्न हो गया।' 

पत्रिका के आरंभिक 3 खंड जहाँ डॉ. ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व के निरूपण और कृतित्व के मूल्यांकन को समर्पित हैं, वहीं चौथे खंड में "विचार कोश" के रूप में उनके 108 विचारों की माला तथा पाँचवें खंड में 51 चयनित कविताओं की प्रस्तुति ने इस 140 पृष्ठीय विशेषांक को और भी संग्रहणीय बना दिया है। ★

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समीक्षक : डॉ. चंदन कुमारी, संकाय सदस्य, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय सामाजिक      विज्ञान, अम्बेडकर नगर (महू)। संपर्क:   संजीव कुमार, आई एफ ए ऑफिस, द्वारा इन्फैंट्री स्कूल, महू (मध्यप्रदेश) 453441. मोबाइल 8210915046. ईमेल- chandan82hindi@gmail.com

साहित्यकार ऋषभ के व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र आकलन● डॉ. सुषमा देवी


नजीबाबाद (उत्तर प्रदेश) से प्रकाशित त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘शोधादर्श’ द्वारा  हिंदी भाषा-साहित्य के चर्चित हस्ताक्षर प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा के रचना संसार पर आधारित विशेषांक ‘प्रेम बना रहे’ को पाँच खंडों में विभाजित करते हुए प्रकाशित किया गया है। प्रथम खंड ‘आखिन की देखी’ में प्रो.  ऋषभदेव शर्मा के सान्निध्य में आए विभिन्न साहित्यकारों, मित्रों और छात्रों के स्वानुभूतिमय क्षणों का अंकन रोचक और जानकारीपूर्ण है। ‘प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोशांतये’ लेख  में  प्रवीण प्रणव ने अपनी साहित्यिक यात्रा की दृढ़ता का श्रेय ऋषभदेव शर्मा को देते हुए कहा है कि न जाने कितने ही नवांकुरों का इन्होंने मार्गदर्शन किया और उन्हें साहित्य की मुख्यधारा से जोड़ा है (पृष्ठ-5)। उन्होंने लिखा है कि भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की अबाध धारा प्रोफेसर शर्मा के माध्यम से निरंतर बहती रही है। प्रो. शर्मा की अहर्निश साहित्य साधना को देखते हुए उनकी समक्ष व्यस्तताओं का पिटारा खोलना अत्यंत कठिन कार्य है। विविध साहित्य-अनुष्ठानों में संलग्न प्रो. शर्मा संवाद में विश्वास करते हैं और स्वयं को वाद-प्रतिवाद से बचा कर रखते हैं। प्रो. शर्मा का पचासों किताबों का लेखन कार्य हो अथवा वक्तव्य, सतसइया के दोहरे से प्रतीत होते हैं। वरिष्ठ तेलुगु साहित्यकार आचार्य एन.गोपि ने ‘धन्य पुरुष’ नामक अपनी कविता के माध्यम से प्रो. शर्मा के व्यक्तित्व को निरूपित किया है। डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने ‘यूँ ही नहीं कोई उत्तर और दक्षिण का संबंध सेतु बन जाता है’ नामक लेख में प्रो. शर्मा के व्यक्तित्व को चित्रित करते हुए लिखा है, ‘मल्टी डाइमेंशनल प्रतिभा और विराट मेधा बहुत कम लोगों में होती है। आप उन्हें जिस भी एंगल से देखेंगे कवि, आलोचक, गद्यकार, मीडिया लेखक या एकेडेमियन वैसे ही दिखने लगेंगे।’ (पृष्ठ-8)। उन्होंने प्रो. शर्मा के तेवरीकार रूप को उद्घाटित करते हुए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को चित्रित किया है। डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने प्रो. शर्मा को स्वयं के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार कहा है | डॉ अश्विनी कुमार शुक्ल प्रो. ऋषभदेव शर्मा के जन्मोत्सव के अवसर पर प्रकाशित ‘धूप के अक्षर’ अभिनंदन ग्रंथ की ‘प्रेम पगे -धूप के अक्षर’ में विवेचना करते हुए कहते हैं, ‘धूप के अक्षर सुनहरे/ न कभी पल भर को ठहरे/ राज इनके बहुत गहरे/ दे रहे संसृति पर पहरे।’ (पृष्ठ-10)। उन्होंने प्रो. शर्मा के साथ व्यतीत किए आत्मीय क्षणों को साझा किया है। प्रथम पंडित अपने दादाजी प्रो. ऋषभदेव शर्मा को एक दिलचस्प व्यक्तित्व का धनी मानते हैं। प्रसिद्ध गजलकार संतोष रज़ा गाजीपुरी प्रो. शर्मा के बारे में कुछ भी बोलना सूरज को दीया दिखाने के समान मानते हैं। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आलोक पांडे ने ‘शर्मा जी, मेरे वाले’ लेख में कहा है कि 'कितना सारा कुछ उन्होंने लिखा और संपादित भी किया है। और अच्छा लिखा है। नई बातें कही हैं। नए विषयों पर लिखा है।  सिनेमा पर चकित करने वाला लेख तो मेरी ही किताब के लिए लिखा है।’ (पृष्ठ-15)। उनके ऊर्जावान, प्रखर व्यक्तित्व की प्रशंसा में प्रो. आलोक पांडे पूर्णतः निमग्न हो जाते हैं। डॉ. सीमा मिश्र ने प्रो. शर्मा को 'ज़िंदादिल प्रेरक विभूति’ कहा है।


भारतीय साहित्य-कला-संस्कृति संस्थान के संस्थापक वरिष्ठ गीतकार इंद्रदेव ‘भारती’ ने ‘डॉ ऋषभ देव शर्मा: जीवन वृत्त’ नामक लेख में प्रो. शर्मा के जीवन को संक्षेप में चित्रित किया है। डॉ. संजीव चिलुकमारि ने 'एक आत्मीय मुलाकात' में प्रो. शर्मा को साधु स्वभाव वाला कहा है। हरिद्वार से गुरुकुल ज्वालापुर महाविद्यालय के डॉ. सुशील कुमार त्यागी ने 'हिंदी साहित्य के प्रख्यात विद्वान प्रो. ऋषभदेव शर्मा' लेख में लिखा है कि गद्य-पद्य तथा संपादन कला में प्रो. शर्मा की लेखनी स्वयं में उल्लेखनीय है। हेमा शर्मा ने अपने ननदोई प्रो. शर्मा के लेखन संसार पर अपने आत्मीय उद्गार व्यक्त किए हैं। न्यू जर्सी से देवी नागरानी ने प्रो. शर्मा  के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। वे कहती हैं, 'प्रो. शर्मा के साहित्य संसार के बिंब देखे जा सकते हैं। उनके ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न परिचायक उनके शब्द संसार के अदृश्य में दृश्य स्वरूप मिलेंगे । गद्य-पद्य, शोध क्षेत्र में वे एक अलग पहचान रखते हैं।' (पृष्ठ- 19)। बिजनौर से इ. हेमंत कुमार जी 'अपनी बात' में प्रो. शर्मा की प्रशंसा करते हैं । 


वर्धा के महात्मा गांधी अनुवाद विद्यापीठ के पूर्व अधिष्ठाता प्रोफेसर देवराज ने 'प्रो. देवराज की डायरी : खतौली का औचक दौरा' में प्रो. शर्मा के साथ व्यतीत अपने संस्मरणात्मक क्षणों को साझा किया है। डॉ. हेतराम भार्गव ने 'साहित्य नक्षत्र ऋषभदेव शर्मा' कविता में अपने मनोद्गार व्यक्त किए हैं। डॉ मंजु शर्मा ने 'सब हो लिए जिनके साथ....' लेख में साहित्य शास्त्र की बारीकियों से लेकर सिलाई मशीन और साइकिल के पुर्जों तक अनेक लौकिक विषयों का साधिकार ज्ञान रखने वाले प्रो. शर्मा के प्रति अपना सम्मान  व्यक्त किया है। 


खंड-दो 'कागज की लेखी' में इस पत्रिका की संयुक्त संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने 'कविता का पक्ष: मनुष्यता का पक्ष' में कविता के इतिहास, विकास एवं उद्देश्य को प्रो. ऋषभदेव शर्मा एवं उनकी अर्द्धांगिनी डॉ पूर्णिमा शर्मा की दृष्टि से विवेचित किया है। डॉ. सुपर्णा मुखर्जी के 'कविता है सतत कालयात्री' लेख में प्रो. शर्मा की कृति 'हिंदी कविता: अतीत से वर्तमान' की प्रासंगिकता को निरूपित किया गया है। डॉ. अर्पणा दीप्ति का 'कविता के पक्ष में बहस और गवाही' लेख तथा प्रो. गोपाल शर्मा के गहन लेख 'शब्दहीन का बेमिसाल सफर' में उनकी कलम के कमाल को बखूबी सिद्ध किया गया है। डॉ. जयप्रकाश नागला ने 'संपादकीय के सशक्त हस्ताक्षर: ऋषभदेव शर्मा' लेख में लोकतंत्र पर प्रो. शर्मा की बेबाक टिप्पणी को सराहा है। अवधेश कुमार सिन्हा ने 'कोरोना काल का मुकम्मल ऐतिहासिक दस्तावेज' लेख में प्रो. शर्मा के दिन-प्रतिदिन के लेखन-निखार को विवेचित किया है। प्रो. गोपाल शर्मा ने 'चाँदी के वर्क लगा आँवले का  मुरब्बा' तथा 'लोकतंत्र के घाट पर नेताओं की भीड़' में, डॉ चंदन कुमारी ने 'जागरूक और बेबाक पत्रकारिता की मिसाल' में तथा डॉ. मिलन बिश्नोई ने 'सवाल और सरोकार में आमजन के प्रश्नोत्तर' लेख में पत्रकार के रूप में ऋषभदेव शर्मा की संवेदनशीलता तथा साफगोई का सटीक प्रतिपादन किया है। डॉ. रामनिवास साहू का 'पठनीयता के उच्च शिखर', डॉ सुषमा देवी का 'विचार और संवाद का सतत प्रवाह', आचार्य प्रताप का 'लोकतंत्र की विसंगतियों पर प्रहार', प्रो. देवराज का 'कथाकारों की दुनिया में विचरता एक कवि' और डॉ. सुषमा देवी का 'चुनावी राजनीति पर बेवाक टिप्पणियाँ' आदि लेख संदर्भोचित एवं सटीक बन पड़े हैं। डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा का 'समानांतर दुनिया रचते हैं लेखक',  डॉ. सुपर्णा मुखर्जी का 'सैर कथाकारों की दुनिया की' डॉ.सुषमा देवी का 'तेवरीकार की आलोचना दृष्टि: कथाकारों की दुनिया', डॉ. सुष्मिता घोष का 'अंतरंग प्रणय दशाओं की समग्र अभिव्यंजना', द्विवागीश गुडला परमेश्वर का 'प्रेम बना रहे में प्रेम निरूपण' जैसे लेख  प्रो. शर्मा के लेखन की सूक्ष्मता का परिचय कराते हैं। अतुल कनक के 'स्त्रीपक्षीय कविताओं का राजस्थानी पाठ', डॉ बनवारी लाल मीना तथा डॉ. इबरार खान के 'प्रेम बना रहे में अभिव्यक्त प्रेम', डॉ. इसपाक अली के 'दार्शनिकता, लोकग्रंथ और लोकगंध: सूँ साँ माणस गंध' में कवि ऋषभ की स्त्रीपक्षीय और मानवीय चेतना को उजागर किया गया है। डॉ. सुपर्णा मुखर्जी की समीक्षा 'प्रेम कविताओं का अनूठा संग्रह है प्रेम बना रहे' में प्रेम में पूर्णता की कवि दृष्टि को निरूपित किया गया है। डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' ने 'हिंदी महत्ता और इयत्ता की पहचान' प्रो. शर्मा के रूप में कराई है। डॉ. रामनिवास साहू का 'धूप के अक्षर' बोले तो????',  डॉ चंदन कुमारी का 'तुलसी, राम और रामायण का नाता',  डॉ. सुपर्णा मुखर्जी का 'कोमलता के परे माणस गंध', डॉ. संगीता शर्मा का 'पीड़ा, आक्रोश और उनके पार' तथा डॉ. गोपाल शर्मा का 'गुड़ की भेली-सा इकसार स्वाद' में प्रो. ऋषभ  की विश्व दृष्टि से परिचित कराया गया है। कहा जा सकता है कि इस खंड में उनकी सभी प्रमुख पुस्तकों की परीक्षा और विवेचना सम्मिलित है।


खंड-तीन 'गहरे पानी पैठ' में  प्रो. गोपाल शर्मा ने अपने विस्तृत और गवेषणापूर्ण आलेख 'जैसे कि बीते दिनों का कबीर वापस आ गया हो' में कवि ऋषभ की कविताओं को सशक्त, गुंजायमान तथा मनोरंजक कहा है। डॉ. अनीता शुक्ल के 'रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत की तुला पर 'देहरी' (स्त्रीपक्षीय कविताएँ) का आकलन' में उनके सामाजिक, साहित्यिक तथा मानवीय सरोकार को बताया गया है। रश्मि अग्रवाल के लेख में प्रो. ऋषभदेव शर्मा एक वृद्धावस्था-विमर्शक के रूप में दिखाई देते है। डॉ.योगेंद्रनाथ मिश्र के 'फर्क तो पड़ता है जी नाम से भी' में उनकी अभिव्यंजना की गहराई और कथन की वक्र भंगिमा का गहन विवेचन निहित है। डॉ अंजु बंसल के 'हिंदी साहित्य के तिलक',  हुडगे नीरज के 'वैश्विक आतंकवाद पर कलम की चोट', पुनीत गोयल के 'आपसे मिलती है हमें प्रेरणा', डॉ. चंदन कुमारी के 'एक स्तंभकार का सामयिक चिंतन',  मीनू कौशिक 'तेजस्विनी' के 'दीवाना हुआ ऋषभ',  डॉ. सुपर्णा मुखर्जी के 'प्रेम और मुठभेड़' तथा डॉ. चंदन कुमारी के 'अखंडता, प्रेम और आक्रोश के कवि ऋषभ' नामक लेखों में प्रो. शर्मा की प्रेम के प्रति समर्पित एवं उदार दृष्टि से लेकर समसामयिक प्रश्नों पर बेबाक राय का गहन विश्लेषण किया गया है। डॉ. महानंदा बी. पाटिल के 'ऋषभदेव शर्मा की कविता में स्त्री विमर्श', प्रवीण प्रणव के 'शिल्प की सीमा से बाहर लिखना कठिन होता है',  डॉ. अरविंद कुमार सिंह के 'धूप के अक्षर- समीक्षा के बहाने' आदि में भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो. शर्मा के लेखन की परिपूर्ण मीमांसा की गई है ।


खंड-4: 'चकमक में आग' में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अत्यंत परिश्रम और धैर्य से   'ऋषभदेव शर्मा विचार कोश' प्रस्तुत किया है।  इसमें अंग्रेजी-हिंदी-मिथ, अनुवाद-भाषा के दो रूप,  अस्मितावादी विमर्श,  आक्रोश-अगीत,  आधुनिकता बोध, उत्तर आधुनिक भाषा संकट,  उपभोक्तावाद: बाजार की संस्कृति, कविता - प्रेम बनाम बाजार , कविता - राजनीति, राष्ट्रीयता, लोक संपृक्ति: रिश्ते-नाते, व्यक्ति बनाम समाज, समकालीन लोक संपृक्ति, काव्य प्रयोजन - जन जागरण, काव्य प्रयोजन- शिवेतरक्षतये, काव्य प्रयोजन - साहित्य का उद्देश्य, चेतना - राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय,  जनसंचार: भाषा रूप का सामर्थ्य, जिजीविषा, ज्ञान - विज्ञान की भाषा,  पत्रकारिता की भाषा आदि विभिन्न विषयों पर प्रो. शर्मा के 108 चिंतनपरक उद्धरण संदर्भ सहित संकलित किए हैं, जो सामान्य पाठकों से लेकर शोधार्थियों तक के लिए बेहद उपयोगी हैं।


खंड-5: 'कबहूँ न जाइ  खुमार' नामक भाग में अमन कुमार त्यागी ने प्रो.ऋषभदेव शर्मा के समग्र काव्य से चुनी हुई 53 कविताएँ और 32 मुक्तक संग्रहित किए हैं। 


'शोधादर्श' के इस विशेषांक के अंत में प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सूक्त वाक्य पर आधारित कविता 'प्रेम बना रहे' भी संकलित है। कुल मिलाकर यह विशेषांक प्रो. ऋषभदेव शर्मा के बहुआयामी साहित्यिक रूप से पाठकों को परिचित कराने में पूर्णतया सफल है।

★★★

डॉ सुषमा देवी,

असिस्टेंट प्रोफेसर(हिंदी),

भाषा विभाग,

भवंस विवेकानंद कॉलेज

सैनिकपुरी-500094.

मो. 99635 90938.