नजीबाबाद (उत्तर प्रदेश) से प्रकाशित त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘शोधादर्श’ द्वारा हिंदी भाषा-साहित्य के चर्चित हस्ताक्षर प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा के रचना संसार पर आधारित विशेषांक ‘प्रेम बना रहे’ को पाँच खंडों में विभाजित करते हुए प्रकाशित किया गया है। प्रथम खंड ‘आखिन की देखी’ में प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सान्निध्य में आए विभिन्न साहित्यकारों, मित्रों और छात्रों के स्वानुभूतिमय क्षणों का अंकन रोचक और जानकारीपूर्ण है। ‘प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोशांतये’ लेख में प्रवीण प्रणव ने अपनी साहित्यिक यात्रा की दृढ़ता का श्रेय ऋषभदेव शर्मा को देते हुए कहा है कि न जाने कितने ही नवांकुरों का इन्होंने मार्गदर्शन किया और उन्हें साहित्य की मुख्यधारा से जोड़ा है (पृष्ठ-5)। उन्होंने लिखा है कि भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की अबाध धारा प्रोफेसर शर्मा के माध्यम से निरंतर बहती रही है। प्रो. शर्मा की अहर्निश साहित्य साधना को देखते हुए उनकी समक्ष व्यस्तताओं का पिटारा खोलना अत्यंत कठिन कार्य है। विविध साहित्य-अनुष्ठानों में संलग्न प्रो. शर्मा संवाद में विश्वास करते हैं और स्वयं को वाद-प्रतिवाद से बचा कर रखते हैं। प्रो. शर्मा का पचासों किताबों का लेखन कार्य हो अथवा वक्तव्य, सतसइया के दोहरे से प्रतीत होते हैं। वरिष्ठ तेलुगु साहित्यकार आचार्य एन.गोपि ने ‘धन्य पुरुष’ नामक अपनी कविता के माध्यम से प्रो. शर्मा के व्यक्तित्व को निरूपित किया है। डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने ‘यूँ ही नहीं कोई उत्तर और दक्षिण का संबंध सेतु बन जाता है’ नामक लेख में प्रो. शर्मा के व्यक्तित्व को चित्रित करते हुए लिखा है, ‘मल्टी डाइमेंशनल प्रतिभा और विराट मेधा बहुत कम लोगों में होती है। आप उन्हें जिस भी एंगल से देखेंगे कवि, आलोचक, गद्यकार, मीडिया लेखक या एकेडेमियन वैसे ही दिखने लगेंगे।’ (पृष्ठ-8)। उन्होंने प्रो. शर्मा के तेवरीकार रूप को उद्घाटित करते हुए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को चित्रित किया है। डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने प्रो. शर्मा को स्वयं के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार कहा है | डॉ अश्विनी कुमार शुक्ल प्रो. ऋषभदेव शर्मा के जन्मोत्सव के अवसर पर प्रकाशित ‘धूप के अक्षर’ अभिनंदन ग्रंथ की ‘प्रेम पगे -धूप के अक्षर’ में विवेचना करते हुए कहते हैं, ‘धूप के अक्षर सुनहरे/ न कभी पल भर को ठहरे/ राज इनके बहुत गहरे/ दे रहे संसृति पर पहरे।’ (पृष्ठ-10)। उन्होंने प्रो. शर्मा के साथ व्यतीत किए आत्मीय क्षणों को साझा किया है। प्रथम पंडित अपने दादाजी प्रो. ऋषभदेव शर्मा को एक दिलचस्प व्यक्तित्व का धनी मानते हैं। प्रसिद्ध गजलकार संतोष रज़ा गाजीपुरी प्रो. शर्मा के बारे में कुछ भी बोलना सूरज को दीया दिखाने के समान मानते हैं। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आलोक पांडे ने ‘शर्मा जी, मेरे वाले’ लेख में कहा है कि 'कितना सारा कुछ उन्होंने लिखा और संपादित भी किया है। और अच्छा लिखा है। नई बातें कही हैं। नए विषयों पर लिखा है। सिनेमा पर चकित करने वाला लेख तो मेरी ही किताब के लिए लिखा है।’ (पृष्ठ-15)। उनके ऊर्जावान, प्रखर व्यक्तित्व की प्रशंसा में प्रो. आलोक पांडे पूर्णतः निमग्न हो जाते हैं। डॉ. सीमा मिश्र ने प्रो. शर्मा को 'ज़िंदादिल प्रेरक विभूति’ कहा है।
भारतीय साहित्य-कला-संस्कृति संस्थान के संस्थापक वरिष्ठ गीतकार इंद्रदेव ‘भारती’ ने ‘डॉ ऋषभ देव शर्मा: जीवन वृत्त’ नामक लेख में प्रो. शर्मा के जीवन को संक्षेप में चित्रित किया है। डॉ. संजीव चिलुकमारि ने 'एक आत्मीय मुलाकात' में प्रो. शर्मा को साधु स्वभाव वाला कहा है। हरिद्वार से गुरुकुल ज्वालापुर महाविद्यालय के डॉ. सुशील कुमार त्यागी ने 'हिंदी साहित्य के प्रख्यात विद्वान प्रो. ऋषभदेव शर्मा' लेख में लिखा है कि गद्य-पद्य तथा संपादन कला में प्रो. शर्मा की लेखनी स्वयं में उल्लेखनीय है। हेमा शर्मा ने अपने ननदोई प्रो. शर्मा के लेखन संसार पर अपने आत्मीय उद्गार व्यक्त किए हैं। न्यू जर्सी से देवी नागरानी ने प्रो. शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। वे कहती हैं, 'प्रो. शर्मा के साहित्य संसार के बिंब देखे जा सकते हैं। उनके ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न परिचायक उनके शब्द संसार के अदृश्य में दृश्य स्वरूप मिलेंगे । गद्य-पद्य, शोध क्षेत्र में वे एक अलग पहचान रखते हैं।' (पृष्ठ- 19)। बिजनौर से इ. हेमंत कुमार जी 'अपनी बात' में प्रो. शर्मा की प्रशंसा करते हैं ।
वर्धा के महात्मा गांधी अनुवाद विद्यापीठ के पूर्व अधिष्ठाता प्रोफेसर देवराज ने 'प्रो. देवराज की डायरी : खतौली का औचक दौरा' में प्रो. शर्मा के साथ व्यतीत अपने संस्मरणात्मक क्षणों को साझा किया है। डॉ. हेतराम भार्गव ने 'साहित्य नक्षत्र ऋषभदेव शर्मा' कविता में अपने मनोद्गार व्यक्त किए हैं। डॉ मंजु शर्मा ने 'सब हो लिए जिनके साथ....' लेख में साहित्य शास्त्र की बारीकियों से लेकर सिलाई मशीन और साइकिल के पुर्जों तक अनेक लौकिक विषयों का साधिकार ज्ञान रखने वाले प्रो. शर्मा के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया है।
खंड-दो 'कागज की लेखी' में इस पत्रिका की संयुक्त संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने 'कविता का पक्ष: मनुष्यता का पक्ष' में कविता के इतिहास, विकास एवं उद्देश्य को प्रो. ऋषभदेव शर्मा एवं उनकी अर्द्धांगिनी डॉ पूर्णिमा शर्मा की दृष्टि से विवेचित किया है। डॉ. सुपर्णा मुखर्जी के 'कविता है सतत कालयात्री' लेख में प्रो. शर्मा की कृति 'हिंदी कविता: अतीत से वर्तमान' की प्रासंगिकता को निरूपित किया गया है। डॉ. अर्पणा दीप्ति का 'कविता के पक्ष में बहस और गवाही' लेख तथा प्रो. गोपाल शर्मा के गहन लेख 'शब्दहीन का बेमिसाल सफर' में उनकी कलम के कमाल को बखूबी सिद्ध किया गया है। डॉ. जयप्रकाश नागला ने 'संपादकीय के सशक्त हस्ताक्षर: ऋषभदेव शर्मा' लेख में लोकतंत्र पर प्रो. शर्मा की बेबाक टिप्पणी को सराहा है। अवधेश कुमार सिन्हा ने 'कोरोना काल का मुकम्मल ऐतिहासिक दस्तावेज' लेख में प्रो. शर्मा के दिन-प्रतिदिन के लेखन-निखार को विवेचित किया है। प्रो. गोपाल शर्मा ने 'चाँदी के वर्क लगा आँवले का मुरब्बा' तथा 'लोकतंत्र के घाट पर नेताओं की भीड़' में, डॉ चंदन कुमारी ने 'जागरूक और बेबाक पत्रकारिता की मिसाल' में तथा डॉ. मिलन बिश्नोई ने 'सवाल और सरोकार में आमजन के प्रश्नोत्तर' लेख में पत्रकार के रूप में ऋषभदेव शर्मा की संवेदनशीलता तथा साफगोई का सटीक प्रतिपादन किया है। डॉ. रामनिवास साहू का 'पठनीयता के उच्च शिखर', डॉ सुषमा देवी का 'विचार और संवाद का सतत प्रवाह', आचार्य प्रताप का 'लोकतंत्र की विसंगतियों पर प्रहार', प्रो. देवराज का 'कथाकारों की दुनिया में विचरता एक कवि' और डॉ. सुषमा देवी का 'चुनावी राजनीति पर बेवाक टिप्पणियाँ' आदि लेख संदर्भोचित एवं सटीक बन पड़े हैं। डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा का 'समानांतर दुनिया रचते हैं लेखक', डॉ. सुपर्णा मुखर्जी का 'सैर कथाकारों की दुनिया की' डॉ.सुषमा देवी का 'तेवरीकार की आलोचना दृष्टि: कथाकारों की दुनिया', डॉ. सुष्मिता घोष का 'अंतरंग प्रणय दशाओं की समग्र अभिव्यंजना', द्विवागीश गुडला परमेश्वर का 'प्रेम बना रहे में प्रेम निरूपण' जैसे लेख प्रो. शर्मा के लेखन की सूक्ष्मता का परिचय कराते हैं। अतुल कनक के 'स्त्रीपक्षीय कविताओं का राजस्थानी पाठ', डॉ बनवारी लाल मीना तथा डॉ. इबरार खान के 'प्रेम बना रहे में अभिव्यक्त प्रेम', डॉ. इसपाक अली के 'दार्शनिकता, लोकग्रंथ और लोकगंध: सूँ साँ माणस गंध' में कवि ऋषभ की स्त्रीपक्षीय और मानवीय चेतना को उजागर किया गया है। डॉ. सुपर्णा मुखर्जी की समीक्षा 'प्रेम कविताओं का अनूठा संग्रह है प्रेम बना रहे' में प्रेम में पूर्णता की कवि दृष्टि को निरूपित किया गया है। डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' ने 'हिंदी महत्ता और इयत्ता की पहचान' प्रो. शर्मा के रूप में कराई है। डॉ. रामनिवास साहू का 'धूप के अक्षर' बोले तो????', डॉ चंदन कुमारी का 'तुलसी, राम और रामायण का नाता', डॉ. सुपर्णा मुखर्जी का 'कोमलता के परे माणस गंध', डॉ. संगीता शर्मा का 'पीड़ा, आक्रोश और उनके पार' तथा डॉ. गोपाल शर्मा का 'गुड़ की भेली-सा इकसार स्वाद' में प्रो. ऋषभ की विश्व दृष्टि से परिचित कराया गया है। कहा जा सकता है कि इस खंड में उनकी सभी प्रमुख पुस्तकों की परीक्षा और विवेचना सम्मिलित है।
खंड-तीन 'गहरे पानी पैठ' में प्रो. गोपाल शर्मा ने अपने विस्तृत और गवेषणापूर्ण आलेख 'जैसे कि बीते दिनों का कबीर वापस आ गया हो' में कवि ऋषभ की कविताओं को सशक्त, गुंजायमान तथा मनोरंजक कहा है। डॉ. अनीता शुक्ल के 'रिचर्ड्स के मूल्य सिद्धांत की तुला पर 'देहरी' (स्त्रीपक्षीय कविताएँ) का आकलन' में उनके सामाजिक, साहित्यिक तथा मानवीय सरोकार को बताया गया है। रश्मि अग्रवाल के लेख में प्रो. ऋषभदेव शर्मा एक वृद्धावस्था-विमर्शक के रूप में दिखाई देते है। डॉ.योगेंद्रनाथ मिश्र के 'फर्क तो पड़ता है जी नाम से भी' में उनकी अभिव्यंजना की गहराई और कथन की वक्र भंगिमा का गहन विवेचन निहित है। डॉ अंजु बंसल के 'हिंदी साहित्य के तिलक', हुडगे नीरज के 'वैश्विक आतंकवाद पर कलम की चोट', पुनीत गोयल के 'आपसे मिलती है हमें प्रेरणा', डॉ. चंदन कुमारी के 'एक स्तंभकार का सामयिक चिंतन', मीनू कौशिक 'तेजस्विनी' के 'दीवाना हुआ ऋषभ', डॉ. सुपर्णा मुखर्जी के 'प्रेम और मुठभेड़' तथा डॉ. चंदन कुमारी के 'अखंडता, प्रेम और आक्रोश के कवि ऋषभ' नामक लेखों में प्रो. शर्मा की प्रेम के प्रति समर्पित एवं उदार दृष्टि से लेकर समसामयिक प्रश्नों पर बेबाक राय का गहन विश्लेषण किया गया है। डॉ. महानंदा बी. पाटिल के 'ऋषभदेव शर्मा की कविता में स्त्री विमर्श', प्रवीण प्रणव के 'शिल्प की सीमा से बाहर लिखना कठिन होता है', डॉ. अरविंद कुमार सिंह के 'धूप के अक्षर- समीक्षा के बहाने' आदि में भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो. शर्मा के लेखन की परिपूर्ण मीमांसा की गई है ।
खंड-4: 'चकमक में आग' में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने अत्यंत परिश्रम और धैर्य से 'ऋषभदेव शर्मा विचार कोश' प्रस्तुत किया है। इसमें अंग्रेजी-हिंदी-मिथ, अनुवाद-भाषा के दो रूप, अस्मितावादी विमर्श, आक्रोश-अगीत, आधुनिकता बोध, उत्तर आधुनिक भाषा संकट, उपभोक्तावाद: बाजार की संस्कृति, कविता - प्रेम बनाम बाजार , कविता - राजनीति, राष्ट्रीयता, लोक संपृक्ति: रिश्ते-नाते, व्यक्ति बनाम समाज, समकालीन लोक संपृक्ति, काव्य प्रयोजन - जन जागरण, काव्य प्रयोजन- शिवेतरक्षतये, काव्य प्रयोजन - साहित्य का उद्देश्य, चेतना - राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, जनसंचार: भाषा रूप का सामर्थ्य, जिजीविषा, ज्ञान - विज्ञान की भाषा, पत्रकारिता की भाषा आदि विभिन्न विषयों पर प्रो. शर्मा के 108 चिंतनपरक उद्धरण संदर्भ सहित संकलित किए हैं, जो सामान्य पाठकों से लेकर शोधार्थियों तक के लिए बेहद उपयोगी हैं।
खंड-5: 'कबहूँ न जाइ खुमार' नामक भाग में अमन कुमार त्यागी ने प्रो.ऋषभदेव शर्मा के समग्र काव्य से चुनी हुई 53 कविताएँ और 32 मुक्तक संग्रहित किए हैं।
'शोधादर्श' के इस विशेषांक के अंत में प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सूक्त वाक्य पर आधारित कविता 'प्रेम बना रहे' भी संकलित है। कुल मिलाकर यह विशेषांक प्रो. ऋषभदेव शर्मा के बहुआयामी साहित्यिक रूप से पाठकों को परिचित कराने में पूर्णतया सफल है।
★★★
डॉ सुषमा देवी,
असिस्टेंट प्रोफेसर(हिंदी),
भाषा विभाग,
भवंस विवेकानंद कॉलेज
सैनिकपुरी-500094.
मो. 99635 90938.
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