शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

पुरुषभाषा : स्त्रीभाषा :: धमकाना : रिरियाना

हैदराबाद, 23 नवंबर 2012 

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के अकादमिक स्टाफ कॉलेज में समकालीन हिंदी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन और शोध की संभावनाओं पर केंद्रित 21 दिवसीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के अंतर्गत ‘स्त्री विमर्श : स्त्रीभाषा’ पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो.ऋषभ देव शर्मा का विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया. 

आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर राज्यों से इस पुनश्चर्या कार्यक्रम में आए प्रतिभागी हिंदी प्राध्यापकों को संबोधित करते हुए प्रो.शर्मा ने कहा कि साहित्य की भाषा समाज की वास्तविक भाषा पर आधारित होती है जिसमें वक्ता-श्रोता संबंध, परिस्थिति, प्रसंग और प्रयोजन के अनुसार ही नहीं सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा के भेद के आधार पर भी भाषा वैविध्य पाए जाते हैं. उन्होंने अनेक उदाहरणों के माध्यम से यह प्रतिपादित किया कि समाज में गौण स्थान होने के कारण परंपरागत स्त्री भाषा में जहाँ विनम्रता और अनुरोध की मूल प्रवृत्ति पाई जाती है वहीं आत्मनिर्भर और स्वतंत्र स्त्री की भाषा में आदेश और निषेध की नई प्रवृत्ति को परिलक्षित किया जा सकता है.  

परिवार और समाज में वर्चस्व के साथ भाषिक व्यवहार का अपरिहार्य संबंध बताते हुए प्रो. शर्मा ने पुरुषसत्तात्मक समाज में पुरुषभाषा को ‘धमकाने’ की भाषा तथा स्त्रीभाषा को ‘रिरियाने’ की भाषा मानते हुए स्त्रियों के भाषा व्यवहार के वर्जित क्षेत्रों की ओर भी इशारा किया और कहा कि हिंदी भाषा का स्त्री केन्द्र बनना अभी बाकी है.

आरंभ में प्रतिभागियों की ओर से विशेष वक्ता का स्वागत किया गया. इस अवसर पर पुनश्चर्या कार्यक्रम के संयोजक प्रो.वी.कृष्णा और अकादमिक स्टाफ कॉलेज के निदेशक प्रो.आर.एस.सर्राजू भी उपस्थित थे.

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