गुरुवार, 24 मई 2018

रूस के विश्वविद्यालयों और काव्यसंध्या में गूँजी राम-संस्कृति और हिंदी



मुंबई, 24 मई, 2018 (प्रदीप कुमार सिंह)। 

साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई द्वारा 10 से 17 मई, 2018 तक आयोजित 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की सप्ताह भर की साहित्यिक यात्रा के दौरान रूस के अलग-अलग महानगरों में दो अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ और एक बहुभाषी काव्यसंध्या सफलतापूर्वक संपन्न हुईं। इन संगोष्ठियों का आयोजन संस्थान ने रूसी-भारतीय मैत्री संघ -दिशा (मास्को, रूस) तथा अयोध्या शोध संस्थान- (अयोध्या, भारत) के साथ मिलकर कजान फेडरल यूनिवर्सिटी (कजान, रूस) और मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी (मास्को, रूस) के संयुक्त तत्वावधान में किया जिनमें भारतीय और रूसी विशेषज्ञों ने “राम संस्कृति की विश्वयात्रा : साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। काव्यसंध्या डॉ. लीना सरीन के सौजन्य से संपन्न हुई जिसमें दोनों देशों के प्रतिभागी कवियों ने रूसी और हिंदी के साथ संस्कृत, कोंकणी, पंजाबी तथा मराठी में काव्यपाठ किया। 

कजान फेडरल यूनिवर्सिटी में आयोजित प्रथम अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन कुलपति प्रो. लतीपोव ने किया। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति को जानने के लिए राम साहित्य को जानना अपरिहार्य है। समकुलपति प्रो. स्वेतलाना ने भारतीय दर्शन और रूसी संस्कृति के आपसी संबंध पर प्रकाश डाला तो साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था के संस्थापक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने वर्तमान विश्व के लिए राम-संस्कृति की प्रासंगिकता को रेखांकित किया तथा रामलीलाओं तथा ललित कलाओं के माध्यम से विश्व भर में भारतीय जीवन दृष्टि के प्रसार की व्याख्या करते हुए रूस के महान रामलीला-कलाकार स्वर्गीय गेन्नाडि मिखाइलोविच पेचनिकोव (1926-2018) को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। भारतीय दूतावास से संबद्ध डॉ. जयसुंदरम ने भारत और रूस के आपसी संबंधों की दृढ़ता के लिए रामकथा की आवश्यकता बताई। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अपने संचालकीय वक्तव्य में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से राम-संस्कृति के वैश्विक प्रसार की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए अमेरिका में बनी एनीमेशन फिल्म 'सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़' की चर्चा की। इस अवसर पर डॉ. प्रदीप कुमार सिंह के प्रधान संपादकत्व में प्रकाशित ग्रंथ "राम-संस्कृति की विश्वयात्रा : साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी " को कुलपति प्रो. लतीपोव ने लोकार्पित किया। साथ ही "रामलीला की विश्वयात्रा" का भी लोकार्पण संपन्न हुआ।

मास्को विश्वविद्यालय के भारत-अध्ययन विभाग में संपन्न द्वितीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/परिसंवाद में विशेष रूप से रूसी भारतविदों प्रो.बरीस अलेक्सेइविच ज़ख़रिन, प्रो. लुदमिला खोखलोवा, प्रो.गुजेल म्रात्खूजीना और प्रो. आन्ना बाचकोश्का ने इतिहास, साहित्य, अनुवाद और ललित कलाओं के माध्यम से रूस में राम-संस्कृति के प्रति अध्येताओं की अभिरुचि पर सप्रमाण विचार-विमर्श किया। विभिन्न कार्यकमों का संचालन प्रो. ऋषभ देव शर्मा, प्रो. दिमित्री बोबकोव और स्थानीय प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से हिंदी और रूसी भाषा में किया। .डॉ. सत्यनारायण ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर लगभग 50 भारतीय और विदेशी विद्वानों का सारस्वत सम्मान भी किया गया। सभी कार्यक्रमों को सफल बनाने में हिंदी भाषा और साहित्य के रूसी छात्र-छात्राओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी की केंद्रीय भूमिका रही। सभी प्रतिभागियों ने रूस के भारतविदों/ हिंदी प्राध्यापकों/ हिंदी छात्रों से भारतीय प्रतिनिधि मंडल के भाषा और संस्कृति विषयक विचार-विनिमय को इन संगोष्ठियों की विशिष्ट उपलब्धि माना। 

सप्ताह भर के इस सारस्वत अनुष्ठान की पूर्णाहुति के रूप में सेंट पीटर्सबर्ग में पाँच रूसी विद्वानों के सान्निध्य में बहुभाषी काव्यसंध्या का आयोजन किया गया। रूसी रचनाकारों और अनुवादकों ने अपनी भाषा-चेतना और सहज सहृदयता ने प्रतिनिधिमंडल का मन मोह लिया। राम संस्कृति को समर्पित इस काव्य संध्या की अध्यक्षता डॉ. वंदना प्रदीप ने की तथा संचालन डॉ. सत्यनारायण ने किया। डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने संस्था के उद्देश्य और योजनाओं के बारे में बताया और कहा कि हिंदी तथा राम भारतीयता के दो पर्याय हैं। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रशियन एकेडमी ऑफ साइंस की भारतविद प्रोफेसर डॉ.एलेना सोबोलेवा ने भारत रूस संबंधों की दृढ़ता की चर्चा करते हुए दोनों देशोँ की वैश्विक चिंताओं को समान बताया और राम संस्कृति की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। विशिष्ट अतिथि डॉ. मारिया यकोलेवा ने भरतनाट्यम और राम संस्कृति के संदेश की चर्चा रूसी भाषा में की जिसका हिंदी अनुवाद डॉ. विश्वजीत विश्वास ने किया। रूस में हिंदी अध्यापन के लिए समर्पित विदुषियों इरीना सोकोलोवा तथा यूलिया बेशुक ने धाराप्रवाह हिंदी बोलते हुए रूस में हिंदी शिक्षण की स्थिति के बारे में बताया तथा मौलिक हिंदी कविताओं के अलावा रूसी लोकगीत तथा उनका अनुवाद प्रस्तुत कर भारतीय कवियों का मन मोह लिया। संस्था की ओर से पुष्पगुच्छ समर्पित कर सभी अतिथियों का स्वागत-सत्कार किया गया तथा डॉ. अमर ज्योति, डॉ. ऋषभ देव शर्मा, डॉ. पुष्पा गुप्ता, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह , रघुनाथ प्रसाद गुप्ता, डॉ. वंदना प्रदीप, डॉ. जगदीश प्रसाद शर्मा, शरद शिरोडकर, डॉ. मधुलता व्यास, डॉ. मीना ढोले, डॉ. सविता सिंह,सरिता नागपाल, कर्मा देवी, वीना धमीजा , किंजल पटेल, और विरंची आदि ने अपने काव्यपाठ द्वारा इस काव्यसंध्या को सफल बनाया। इन समस्त सारस्वत आयोजनों के साथ-साथ रूस के तीन महानगरों कजान, मास्को और पीटर्सबर्ग का भ्रमण तो खैर अपनी जगह अविस्मरणीय है ही। 

(प्रस्तुति : प्रदीप कुमार सिंह, मुंबई)

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