मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012

'भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत' पर व्याख्यान संपन्न


चित्र परिचय : आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के अंतर्गत
'भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत' पर बोलते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा. 
साथ में डॉ.जी.नीरजा, डॉ.राधेश्याम शुक्ल एवं डॉ.एम.वेंकटेश्वर.

हैदराबाद 26 अक्टूबर 2012. (प्रेस विज्ञप्ति).

आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के तत्वावधान में आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘भारतीय अस्मिता और भास्वर भारत’ विषय पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विभागाध्यक्ष प्रो. ऋषभ देव शर्मा का व्याख्यान संपन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता हैदराबाद से सद्यःप्रकाशित मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने की. अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.एम.वेंकटेश्वर विशेष अतिथि के रूप में मंचासीन हुए. संचालन मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ की सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया.


मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि भारतीय अस्मिता भौगोलिक या राजनैतिक तत्वों की अपेक्षा हमारे सांस्कृतिक जुड़ावों के समुच्चय से आकार प्राप्त करती है जिसमें मनुष्य, प्रकृति, धर्म, मूल्य, आत्म, समाज और विश्व से हमारे संबंधों की मौलिक दृष्टि शामिल है. उन्होंने कहा कि भारतीय दृष्टि का यह वैशिष्ट्य है कि वह पश्चिम की भाँति प्रकृति से उपभोग और दोहन का संबंध नहीं रखती बल्कि उसे चिति स्वरूप मानती है और सबके अभ्युदय और कल्याण की कामना से संचालित होती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय अस्मिता का मूल स्वभाव सबके विकास और आनंद में अभिव्यक्त होता है और संगम संस्कृति तथा लोक संवेदना के रूप में प्रतिफलित. ‘भास्वर भारत’ को भारतीय अस्मिता के लिए समर्पित पत्रिका बताते हुए डॉ. शर्मा ने ध्यान दिलाया कि यह पत्रिका आज की दुनिया के लिए उपादेय भारतीय चिंतन को दुनिया के सामने लाने तथा दुनिया के आधुनिक श्रेष्ठ विचारों से भारतीय समाज को अवगत कराने के उद्देश्य से भाषा, संस्कृति और विचार को अपने केंद्रीय विषय के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली पर्याप्त महत्वाकांक्षी पत्रिका है.

विशिष्ट अतिथि प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने ‘भास्वर भारत’ के लक्ष्य और उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बलपूर्वक यह कहा कि खांटी राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना इस पत्रिका का प्रमुख प्रयोजन है तथा इसके प्रवेशांक में सम्मिलित ज्वलंत आवरणकथा से लेकर हिंदी भाषा, लिपि, हेमचंद्र राय, ब्रजगोपियों के महारास, अरुणाचल के तीर्थ और अमेरिकी विज्ञानकथा ‘अमरों का द्वीप’ तक सारी सामग्री अत्यंत विचारपूर्ण, स्तरीय एवं संग्रहणीय बन पड़ी है.

परिचर्चा के दौरान डॉ. देवेंद्र शर्मा ने भारत की प्रगतिशील वैज्ञानिक चेतना को प्रमुखता प्रदान करने की सराहना की तो डॉ. विनीता सिन्हा ने कविता को भी सम्मिलित करने की माँग उठाई. लालचंद सिंघल ने जनजागरण के लिए पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौती की बात की तो भवंरलाल उपाध्याय ने याद दिलाया कि शिखरों की चर्चा में नींव के पत्थरों को कदापि न भुलाया जाए और हर अत्याचार और शोषण के संदर्भ में पत्रिका गरीब आम जन की पक्षधर बनकर उभरे. दयानिधि ने पत्रिका की वैचारिकता को उच्च कोटि के चिंतन से युक्त मानते हुए कहा कि हमें भारतीय समाज की जड़ रूढ़ियों से टकराना होगा तो जी. परमेश्वर ने भाषा, संस्कृति और विचारों को समर्पित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के प्रकाशन को साहसिक कदम बताते हुए कहा कि यह पत्रिका नई चेतना के जागरण के लिए चिंगारी का काम करेगी.  

व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि इस पत्रिका में मनुष्य जाति के उत्कर्ष से सबंधित सभी विषयों का समावेश रहेगा तथा इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाएगा कि भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और प्रगतिशीलता को आधुनिक विश्व के समक्ष उजागर किया जा सके. डॉ. शुक्ल ने उदात्त नागरिक चेतना, सात्विक चिंतन, बदलाव की स्वीकृति, विचारों की सार्वभौमिकता और खुलेपन को ‘भास्वर भारत’ की नीति के रूप में रेखांकित करते हुए यथाशीघ्र इसके अंतर्गत युवा मंच और महिला मंच गठित करने की योजना की भी जानकारी दी.

आरंभ में प्रो. बी. सत्यनारायण और इंद्राणी ने आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी की ओर से अतिथियों का सत्कार किया. एन.एप्पल नायुडु के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ समारोह का समापन हुआ.

[प्रस्तुति – डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा]

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