हिंदी साधक डॉ. निशंक का भावाभिनंदन
- डॉ. चंदन कुमारी
भारत के शिक्षामंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक (1959) का व्यक्तित्व बहुआयामी है| वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं| इससे पूर्व वे स्वयंसेवक, शिक्षक एवं पत्रकार की भूमिका का निर्वाह कर चुके हैं| राजनीति के क्षेत्र में उनका पदार्पण माननीय अटल बिहरी वाजपेयी के स्नेहादेश से हुआ| उनके कार्यकाल के दौरान उनकी सेवाभावना और कर्तव्यपरायणता से सभी स्वतः परिचित हो रहे हैं| तथापि एक संवेदनशील और भावुक व्यक्ति हमेशा सेवा और कर्तव्य का पालन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाता| वह अपने अनुभवों को सबके साथ साझा करना चाहता है| अपने साहित्य के माध्यम से डॉ. निशंक ने भी यह किया है| उनका साहित्य अनुभव से उपजा है| वैश्विक स्तर पर अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए उन्हें बारंबार विविध सम्मानों से नवाजा गया है| देश-विदेश की कई भाषाओँ में उनके साहित्य का अनुवाद किया गया है। साथ ही वैश्विक स्तर पर उनकी बहुत-सी रचनाएँ पाठ्यक्रम में भी शामिल की गई हैं| एक सामान्य मनुष्य जिसने संघर्षों में तपकर अपने जीवन को प्रकाशवान बनाया है, निश्चित ही वह राष्ट्र के भावी कर्णधारों के लिए प्रेरणास्रोत है| अभावों और विपदाओं को अपने संघर्षशील जुनून से मात देकर जिस तरह डॉ. निशंक ने उन्नति और उच्चता तक का सफर तय किया है; वह उनकी कर्मठता का द्योतक है| उनकी कर्मठता एवं संवेदनशीलता का साक्षात्कार देशवासियों ने केदारनाथ के भयावह जलप्लावन के दौर में भी किया है| उन्होंने अपने साहित्य में दिखाया है कि आज किस तरह सुविधाभोगी और दिशाहीन जीवन जीने की मानसिकता के बोझ से मनुष्यता कराह रही है| स्वार्थांधता ने अपनत्व को दबोच रखा है| अपने ही दुःख से व्याकुल प्राणी नीतिशून्य और मर्यादापतित-सा आचरण कर रहा है| सामाजिक परिवेश के यथार्थ चित्रण के साथ इनके साहित्य में जो पक्ष प्रबलता से उभरा है, वह है ‘जिजीविषा’| इसलिए इनके साहित्य में मनुष्यता जिंदा है| आत्मीयता जिंदा है| नीति और मर्यादा जिंदा है। साथ ही प्रतिभाएँ निखरी हुई और सफलता की पराकाष्ठा को चूमनेवाली हैं| यहाँ असहाय और लाचार व्यक्ति भी ईमानदारी और कर्मठता का संदेश देता है| जीवन से पलायन आवश्यक नहीं, आवश्यक है जीवन में छाए दुखों और अनिष्टों का उन्मूलन या उनका स्वरूप परिवर्तन|
निशंक के साहित्य में निहित इन्हीं आशावादी स्वरों की समेकित पड़ताल के रूप में ‘तत्त्वदर्शी निशंक’(2021) ग्रंथ का प्रणयन हुआ है| इसके संपादक दक्षिण भारत के मूर्धन्य हिंदीसेवी, शिक्षाविद, समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ. ऋषभदेव शर्मा हैं एवं सह संपादक शीला बालाजी हैं| यह ग्रंथ दक्षिण के अध्येताओं की ओर से यशस्वी राजनेता एवं साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को ही समर्पित है| यह डॉ. निशंक का भावाभिनंदन है|
विवेच्य ग्रंथ में छह खंड हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं- विषय प्रवेश, काव्य जगत, कहानियों का संसार, उपन्यास सृष्टि, अकाल्पनिक गद्य और विश्व दृष्टि| पहले खंड में सबसे पहले लेखक की विभिन्न पुस्तकों की भूमिकाओं का वैदुष्यपूर्ण विवेचन प्रो. गोपाल शर्मा ने किया है| इसमें उन्होंने देश और विदेश के विद्वानों द्वारा पुस्तक की भूमिका संबंधी विचारों पर प्रकाश डालते हुए निशंक के साहित्य की रचना प्रक्रिया, उद्देश्य एवं विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी गई उनकी पुस्तकों की भूमिकाओं से महत्वपूर्ण सूत्रों को निकालकर सामने रखा है| इसी खंड में शीला बालाजी ने अपने शोधपत्र के माध्यम से निशंक के साहित्यिक और राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डाला है|
दूसरे खंड में प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने निशंक के काव्य संसार के भाव पक्ष और कला पक्ष में निहित सौंदर्य का विश्लेषण किया है| डॉ. एन. लक्ष्मीप्रिया ने कविता के कला पक्ष के अंतर्गत ही शब्द प्रयोग, संवाद, देह भाषा, संबोधन एवं स्थिति चित्रण इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला है| डॉ. सुपर्णा मुखर्जी और डॉ. भागवतुल हेमलता ने निशंक की कविताओं में राष्ट्रभूमि और संस्कृति के प्रति अनन्य प्रेम देखा है|
तीसरा खंड कहानी केंद्रित है| इस खंड में डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने यथार्थ और आदर्श के आलोक में कहानियों की समर्थता का आकलन किया है| इस क्रम में कथ्य के साथ कहानियों के शिल्प पर भी प्रकाश पड़ा है| इनके साथ डॉ. डॉली, श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ, प्रो. श्रीलता विष्णु एवं डॉ. सुषमा देवी ने कहानियों में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं की जटिलता, राष्ट्र-समाज से जीवन की घनिष्ठता, मानवता, और आशावादी स्वर को समसामयिक परिवेश से जोड़कर विश्लेषित किया गया है|
चौथा खंड उपन्यास केंद्रित है| इसके अंतर्गत डॉ. बी.बालाजी ने स्थापित किया है कि पहाड़ी लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का यथार्थ चित्रण डॉ. निशंक के उपन्यासों में सर्वाधिक जीवंत बन पड़ा है| साहित्य और भाषा के अंतःसंबंध को व्याख्यायित करते हुए उन्होंने डॉ. निशंक की कथाभाषा गठन प्रक्रिया की ओर भी ध्यान खींचा है| डॉ. मंजु शर्मा ने चेतना की दृष्टि से जीवन और संस्कृति को केंद्र में रखकर डॉ. निशंक के उपन्यासों का अनुशीलन किया और पात्रों की आत्मनिर्भरता और दृढ़ता को लक्षित किया है|
पाँचवाँ खंड यात्रा वृत्तांत और संस्मरण केंद्रित है| इस खंड के दो शोधपत्र ‘केदारनाथ सहित अन्य आपदाओं पर आधारित संस्मरण’ एवं ‘नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया और मारीशस की यात्रा आधारित यात्रा-वृत्तांत’ पर केंद्रित हैं। ये दोनों श्री प्रवीण प्रणव द्वारा लिखे गए हैं| इनमें यथार्थ के अंकन का तटस्थ विश्लेषण निश्चित ही विशिष्ट है| स्वामी विवेकानंद की व्यक्तित्व निर्माण वाली शिक्षाओं पर आधारित डॉ. निशंक की पुस्तक ‘संसार कायरों के लिए नहीं’ पर डॉ. सुरेश भीमराव गरुड़ ने प्रेरणास्पद चर्चा की है|
अंतिम और छठे खंड में यथार्थ और संवेदना की दृष्टि से डॉ. निशंक के साहित्य का मूल्यांकन किया गया है| डॉ. संगीता शर्मा एवं मिलन बिश्नोई के अनुसार डॉ. निशंक ने देशप्रेम, ग्रामीण चेतना, समसामयिक समस्यायों, स्त्री की स्थिति और वर्ग संघर्ष को अपने साहित्य में चित्रित किया है| इन सबके साथ ही देशप्रेम की कविताओं में उषारानी राव ने अनुभूति की अभिव्यक्ति में सौंदर्यबोध देखा है| इस खंड में ‘तू धरा पर फ़ैल इतना लौ तेरी आकाश ले’ शीर्षक शोधपत्र शोधपत्र में डॉ. चंदन कुमारी ने डॉ. निशंक के साहित्य में निहित उदात्त जीवन मूल्यों की पड़ताल की है|
ग्रंथ का अंतिम शोधपत्र है ‘तत्वदर्शी निशंक’। इसमें डॉ. निशंक के लिए प्रयुक्त ‘तत्त्वदर्शी’ विशेषण का विश्लेषण करते हुए प्रो. गोपाल शर्मा ने डॉ. निशंक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विशिष्टताओं पर सोदाहरण चर्चा की है| इस ग्रंथ की ‘भूमिका’ में प्रो. ऋषभदेव शर्मा एवं ‘आशीर्वचन’ में गुरुवर प्रो. योगेंद्रनाथ शर्मा 'अरुण' ने भी इन बिंदुओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला है| ‘निशंक की दृढ़ मान्यता है कि युवा वर्ग किसी भी राष्ट्र की नींव होता है, युवा वर्ग की ऊर्जा और क्षमता को सही दिशा में प्रवाहित करते हुए राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की आधारशिला तैयार करना समाज और संस्कृति की पहली आवश्यकता होती है|’(भूमिका से उद्धृत)| कुल मिला कर यह ग्रंथ इस निष्कर्ष को भली भाँति प्रतिपादित करता है कि डॉ. निशंक का साहित्य साधारण से जुड़ा हुआ है, पर उसका लक्ष्य विशिष्ट व्यक्तित्व के निर्माण पर टिका हुआ है| डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के साहित्यिक अवदान को समझने और परखने के लिए यह एक अनिवार्य ग्रंथ है। 000
समीक्षित कृति: तत्वदर्शी निशंक
संपादक: प्रो. ऋषभदेव शर्मा
सह संपादक: शीला बालाजी
संस्करण: प्रथम, 2021
प्रकाशन: प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य: 700 रुपए
● समीक्षक : डॉ. चंदन कुमारी,
द्वारा श्री संजीव कुमार,
आईएफए, एयर फ़ोर्स स्टेशन,
जामनगर_361003 (गुजरात)
chandan82hindi@gmail.com
मोबाइल 8210915046
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