रविवार, 2 मई 2021

'बस एक ही इच्छा' का संदर्भ : गोपाल शर्मा







आलेख

‘बस एक ही इच्छा’ का संदर्भ

- गोपाल शर्मा

(देश की प्रसिद्ध संस्था ‘स्याही ब्लू’ की रविवारीय पुस्तक वार्ता के पार्ट -5 में दिनांक 14 मार्च 2021 को डॉ निशंक के प्रारम्भिक कहानी संग्रह ‘बस एक ही इच्छा’ पर देश के कई विद्वान समीक्षकों ने चर्चा की। इस वार्ता शृंखला में प्रति-सप्ताह डॉ निशंक के रचना संसार से एक पुस्तक लेकर उस पर केन्द्रित चर्चा होती है। यू ट्यूब से इसे सुनकर डॉ गोपाल शर्मा के वक्तव्य का पाठ डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने लिपिबद्ध किया है।– संपादक)

“जो उसको जानता है, उसके लिए वह अज्ञात है । जो उसको नहीं जानता उसके लिए वह ज्ञात है- केन उपनिषद का ब्रहम के लिए कहा गया यह कथन डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ पर मेरे लिए सौलह आने सही बैठता है। निशंक जी ने कुछ सोचकर ही अपना उपनाम ‘निशंक’ रखा हो । दरअसल उनको जानने वाले देश के करोड़ों लोग उन्हें राजनेता के रूप में जानते हैं, पर उन्हें कवि-साहित्यकार के रूप में जानने वाले अभी उतनी बड़ी संख्या में नहीं हैं। मैं उन्हें व्यक्ति के रूप में नहीं जानता, न मैं राजनेता के रूप में ही उनसे परिचित हूँ। पर उनको उनकी रचनाओं से अब पहचानने लगा हूँ। मेरा डॉ. निशंक व्यक्ति से कोई साक्षात परिचय नहीं है, पर मैं उनके साहित्यिक व्यक्तित्व से उसी प्रकार परिचित हूँ जैसा परिचय हंस राज रहबर का प्रेमचंद से रहा होगा। उन्हें दूर से देखा जरूर है और यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि डॉ. निशंक ज़्यादातर पुराने हिंदी लेखकों की तरह दीन हीन नहीं एक दम कुलीन और भद्र दिखाई देते हैं।

साहित्यकार के रूप में निशंक के दो रूप हैं । एक तो कवि रूप ही है जहाँ कविता और निज देश एकाकार हो गए हैं। दूसरी ओर कथाकार निशंक हैं और इस रूप में वे अपने 'परिवेश के कथाकार' हैं। वे "जादुई यथार्थ" के स्थान पर "जमीनी यथार्थ" के पुरस्कर्ता हैं। यदि केवल दस मिनट में निशंक जी केप्रारंभिक कहानी संग्रह “बस एक ही इच्छा” की कहानियों पर चर्चा की जाए तो सबसे पहले यह कहना होगा कि यहाँ प्रस्तुत दर्जन भर कहानियाँ, कहानियाँ कम आप-बीती अधिक हैं। इन कहानियों में कथाकार के रूप में निशंक जी की उपस्थिति तो है ही, वे कई कहानियों में एक पात्र के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

किसी ने ठीक ही कहा था – We are just stories in the end. Just make it a good one. शेक्सपियर तो जीवन को ही किसी मूर्ख के द्वारा कही गई कहानी कह डालता है। कहानियाँ सर्वत्र हैं। हम ही कहानियाँ नहीं कहते, कहानियाँ भी हमें कहतीं हैं। यदि कहानियाँ सर्वत्र हैं तो हम भी इन कहानियों में सर्वत्र हैं। कहानी एक नहीं होती, कहानियाँ होती हैं। एक वह जो कहानीकार लिख कर हमें देता है और दूसरी वह जो उसने देखी होती है, सुनी होती है या स्वयं भोगी होती है।

अब एक कहानी को लें। “ बस एक ही इच्छा” कहानी में कहानी तो बस इतनी ही है कि होटल में काम करने वाला वेटर लड़का “मैं” को अपना दुख दर्द सुना देता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि वह ‘मैं’ के साथ उसके उपनाम “पोखरियाल” के कारण ‘पहाड़ी’ होने से बादरायण संबंध मान लेता है। ‘मैं’ इस कहानी को इसलिए लिखता है क्योंकि वह इस संघर्षशील लड़के के आत्मविश्वास से प्रभावित होता है – बाबूजी, मेरी तो बस एक ही इच्छा है कि चाहे मैं जिस हाल में भी रहूँ किंतु अपने भाइयों को खूब पढ़ाऊँगा। इतना पढ़ाऊँगा कि वे एक दिन बहुत बड़े साहब बन जाएँ। हर कहानी में कोई न कोई इच्छा है जिसका कोई न पात्र किसी न किसी इच्छा प्राप्ति के लिए कर्मरत है। विक्रम जैसे पात्र आपको अपने इर्दगिर्द मिल जाएँगे । स्वार्थ का परमार्थ में परिवर्तन हो जाना इन पात्रों की विशेषता है।

मासूम चेहरा जो इस कथा का नायक है वह अब पाठक के स्मृति पटल पर ज्यों का त्यों अंकित हो जाता है। "उसने कहा था" के रचनाकार को तो जीवन में केवल तीन चार कहानियाँ लिखनी थीं इसलिए पहली कहानी में ही वे सब कुछ बाँच गए। "ग्यारह वर्ष का समय" लिखकर रामचंद्र शुक्ल इस राह से किनारा कर गए। पर युवक रमेश पोखरियाल ने "निशंक" बनकर संख्या की दृष्टि से प्रेमचंद के समकक्ष आ जाने का यत्न किया। दूसरी कहानी ‘मैं ओर तुम’ में ‘मैं’ का एक नाम है – शशांक । और तुम का नाम है –दीप्ति । शशांक दहेज रहित विवाह करना चाहता है। पर उसके भाई भाभी ही नहीं दीप्ति और उसके परिवार वाले भी मानते हैं कि "दहेज न देकर अपने आप को अपने रिश्तेदारों व समाज के बीच अपमानित महसूस कराना घाटे का सौदा होगा।" किसी को भी यह मंजूर नहीं। कथित आदर्शवादियों के बीच आदर्शवादी कथानायक अपनी दुर्गति पर खिन्न है और मेरे जैसा कुलीन पाठक सोचता है – मैंने अपनी शादी के समय चुप रहकर एक तरह से अच्छा ही किया। पहाड़ का यह आम व्यक्ति कैसे उदात्त व्यक्तित्व बन जाता है, अद्भुत है।

तीसरी कहानी है ‘कितना संघर्ष और’। इस कहानी में कथानायक है – रमेश । वह श्वेता नामक संघर्षशील लड़की की कहानी सुनाता है। पर मैं चौथी कहानी “संकल्प” पर बात करके अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा । इस कहानी में “मैं” का नाम “निशीथ” है और यहाँ तब के उभरते युवा कथाकार और शिक्षक रमेश पोखरियाल इस कहानी के द्वारा अपनी बनती और बदलती मनस्थिति का आभास देते हैं। आम व्यक्ति के हितों की बात करना, शोषितों के लिए जूझना उसे अच्छा लगने लगा था। समाज में फैली अराजकता, अव्यवस्था और दुराचार के खिलाफ उसके मन में भारी आक्रोश पैदा होता है। और फिर उसे वह मार्ग दिखाई देता है जिसे वह सहर्ष अपना लेता है । वह अपनी जन्मदात्री माता को अपना संकल्प प्रेषित कर देता है । वह अपना सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि को सौंपने का संकल्प करते हुए एक श्लोक पढ़ता है –

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ॥

(हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।)

दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं – एक तो कथाकार कवि-हृदय है और दूसरे संवेदना के धरातल पर वह इतना आंदोलित है कि अभिव्यक्ति के लिए छटपटाहट अनुभव करता है इसलिए भाषाई उछलकूद के स्थान पर सहजता को शैली बनाने का प्रयत्न करता है। शिक्षक से शिक्षामंत्री तक के इस सफर में यह लेखकीय “संकल्प” रेखांकित किया जा सकता है , किया जाना चाहिए। आज इस कहानी को पढ़ना इस संकल्प को आत्मार्पित करना भी तो है। इसलिए यह रचना इन अर्थों में कालजयी कही जा सकती है। अब मैं और किसी कहानी का जिक्र न करके यह कहकर अपनी बात समाप्त करूंगा कि इस संग्रह की सब कहानियाँ उस समय की हैं जब कथाकार ने लिखना शुरू भर किया था। वह लगभग सभी कहानियों में “मैं” बनकर उपस्थित है।

कई बार भाषा-प्रयोग में "मूकता” जैसे शब्द चौंका देते हैं। वह किसी शायर या कवि को उद्धृत भी करता है तो अपनी तरह से और स्मृति के आधार पर । एक आलोचक ने विश्व-विख्यात कथाकार जेन ऑस्टिन की प्रारम्भिक रचनाओं को "ओपिन, अम्यूज्ड, ईज़ी इंटेलेक्चुयल" का लेखन कहा था। मैं भी इन प्रारम्भिक कथाओं "बस एक ही इच्छा और अन्य कहानियाँ" के रचनाकार को इसी तर्ज़ पर “सहज-पारिवारिक, देशानुरागी-चिंतक” कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। आप शेष कहानियों को पढ़कर मेरे इस कथन की परीक्षा स्वयं करेंगे , यह मैं जानता हूँ। धन्यवाद।

------------

अंग्रेजी प्रोफेसर, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया # आवास – 6-3-120/23, एनपीए कालोनी, शिवरामपल्ली, हैदराबाद – 500 052

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें