डॉ. एम. शेषन को श्रद्धांजलि
खतौली, 22 अक्टूबर, 2022।
आज 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में तमिल भाषी विद्वान और भारतीय हिंदी आंदोलन के समर्थ कार्यकर्ता डॉ. एम. शेषन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक आयोजन संपन्न हुआ। इसमें हैदराबाद से पधारे प्रो ऋषभदेव शर्मा ने विस्तार से डॉ. एम. शेषन का परिचय दिया और उनकी हिंदी सेवा के साथ ही तमिल और हिंदी के बारे में जो तुलनात्मक अध्ययन हुआ है, उसके महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर सबका ध्यान खींचा। प्रो. ऋषभ ने इस बात पर बहुत बल दिया कि डॉ. एम. शेषन ने हिंदी साहित्य में रीतिकाल और तमिल साहित्य की रीति परंपरा के बीच संबंध की जो अवधारणा प्रस्तुत की थी, उस पर गंभीर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के खतौली पधारने की घटना का स्मरण दिलाते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लेखक जसवीर राणा ने यह प्रतिपादित किया कि जब शेषन जी हिंदी सेवी टी. एस. राजु शर्मा और प्रो. एन. सुंदरम म के साथ खतौली पधारे थे, तो उनकी स्पष्टवादिता तथा सहज व्यवहार ने सभी को प्रभावित किया था। उस समय उन्होंने उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच संबंध को हिंदी भाषा तथा साहित्य के सहारे अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया था, इसीलिए शेषन जी उत्तरापथ और दक्षिणापथ के मिलन को महत्व देने वाले राष्ट्रभक्त थे। जसवीर राणा ने उनके निधन को पूरे हिंदी आंदोलन और भारतीय भाषाओं की क्षति माना।
वरिष्ठ कवि-समीक्षक प्रो. देवराज ने इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के साथ अपने बरसों के संबंध को याद किया और यह कहा कि भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा को मजबूत बनाने के लिए तथा सभी भारतीय भाषाओं की समृद्धि के लिए डॉ. एम. शेषन ने जो तुलनात्मक अध्ययन किया तथा अपने लेखन के माध्यम से हिंदी और तमिल के पाठकों को इन दोनों भाषाओं के साहित्य का जो ज्ञान दिया, वह कभी नहीं भुलाया जा सकता।
साहित्य मंथन के इस आयोजन में यह भी याद किया गया कि डॉ. एम. शेषन को हिंदी भाषा के प्रति रुचि तो अपने प्रारंभिक दिनों से ही हो गई थी, लेकिन उसका गहरा ज्ञान उन्होंने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. शिव प्रसाद सिंह के संपर्क में आकर अर्जित किया। आचार्य द्विवेदी ने अपने इस महान शिष्य को संस्कृति की ज़मीन से जोड़ने का जो कार्य किया था और भारतीयता को समझने की जो योग्यता दी थी, उसका शेषन जी ने सफल प्रयोग भारत की राष्ट्रीय चेतना को समृद्ध बनाने में किया। श्रद्धांजलि सभा के अंत में 2 मिनट का मौन रखकर शेषन जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई। 000
प्रेषक-
जसवीर राणा
अध्यक्ष, साहित्य मंथन, खतौली।
https://sahityakunj.net/news/dr-sheshan-ko-shraddhanjali
परमादरणीय शेषन जी के सान्निध्य में रहने और उन्हें नजदीक से जानने समझने का मुझे अवसर नहीं मिला, किंतु मैं जानती हूं कि शेषन जी ने हिंदी तथा तमिल के बीच सेतु का कार्य किया है जो वास्तव में प्रशंसनीय है, उनका न रहना अब किसी बडी क्षति से कम नहीं है, ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। वे इन दोनों भाषाओं के साहित्य जगत में अमर रहेंगे।
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